MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।

उत्तर -

भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तन
(Present changes in Caste System in India)

आधुनिक काल में भारतवर्ष में जाति-व्यवस्था में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। अब एक ओर विभिन्न जातियों की स्थिति और कार्यों में परिवर्तन होते जा रहे हैं तथा दूसरी ओर जाति प्रथा से सम्बन्धित प्रायः सभी प्रतिबन्ध दिन-प्रतिदिन निर्बल होते जा रहे हैं। जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तन निम्नलिखित हैं-

(1) ब्राह्मणों के प्रभुत्व में कमी - जातीय संरचना में ब्राह्मणों की स्थिति सबसे ऊपर थी और आज भी है, किन्तु जातीय आधार उनका जो प्रभुत्व पहले सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक आदि क्षेत्रों में था, वह अब नहीं है। आज के युग में क्योंकि राजनैतिक तथा आर्थिक शक्ति की महत्ता अधिक है, इसलिये ब्राह्मणों का प्रभुत्व घटना स्वाभाविक भी है। पहले ब्राह्मणों का प्रमुख महत्व उनका धार्मिक क्रियाओं के साथ संलग्न होने के कारण था, किन्तु अब नगरों में धार्मिक क्रियाओं व पूजा-पाठ आदि का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा इसके अतिरिक्त औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के फलस्वरूप नये व्यवसायों व नौकरियों का जन्म हुआ है जिनमें व्यक्तिगत कुशलता को अधिक महत्व दिया जाता है। इससे निम्न जातियों के सदस्यों को भी ऊपर उठने का अवसर प्राप्त हो जाता है। इन सबसे ब्राह्मणों के परम्परागत प्रभुत्व को काफी आघात पहुँचा है।

(2) जातीय संस्तरण में परिवर्तन - जाति-प्रथा के अन्तर्गत विभिन्न जातियों का एक संस्तरण पाया जाता है अर्थात् सभी जातियाँ अपनी ऊँची अथवा नीची स्थितियों को स्वीकार करती रही हैं। किन्तु वर्तमान काल में इस संस्तरण में परिवर्तन हुआ है। अब निम्न जातियाँ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी स्थिति में सुधार करके जातीय संस्तरण से ऊँचा उठने का प्रयास कर रही हैं। पहले जाति से ही व्यक्ति का समाज में स्थान निर्धारित होता था, किन्तु अब गुण, योग्यता, सम्पत्ति तथा राजनीतिक शक्ति के आधार पर सामाजिक स्थिति निश्चित होने लगी है। महानगरों में प्रायः देखा जाता है कि अपरिचितता का लाभ उठाकर निम्न जातियों के व्यक्ति अपने को उचित जाति का सदस्य बताने लगते हैं।

(3) व्यवसाय सम्बन्धी प्रतिबन्धों में परिवर्तन - परम्परागत रूप में जाति प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय होता था जिसे बदला नहीं जा सकता, किन्तु अब व्यक्ति अपनी योग्यता एवं क्षमता के आधार पर व्यवसाय व नौकरी चुनने लगा है। आज एक जाति अनेक व्यवसायों में तथा एक व्यवसाय में अनेक जातियाँ लगी हुई हैं। लेकिन यहाँ यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि आज भी ब्राह्मणों एवं हरिजनों के कार्यों को अन्य जातियों ने नहीं अपनाया है।

(4) विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्धों में परिवर्तन - जाति व्यवस्था की एक मुख्य विशेषता अन्तर्विवाह रहा है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाति में ही विवाह करना होता था। अब स्थिति में अन्तर आ गया है। आज शिक्षा और प्रगतिवादी विचारों के फैलने के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में स्त्रियों और पुरुषों को एक-दूसरे के निकट आने और एक साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ है। इसके साथ ही साथ विवाह आदि के सम्बन्ध में वैधानिक सुविधायें भी उन्हें मिल गयी हैं। इन सबके परिणामस्वरूप विलम्ब विवाह, प्रेम-विवाह और अन्तर्जातीय विवाह करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, साथ ही साथ विवाह विच्छेद तथा विधवा-पुनर्विवाह होने लगे हैं।

(5) भोजन सम्बन्धी प्रतिबन्धों में परिवर्तन - परम्परागत जाति प्रथा के अन्तर्गत खान-पान सम्बन्धी अनेकानेक निषेध थे। सभी प्रकार के भोजन के बारे में पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा प्रचलित थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। कच्चे और पक्के भोजन का भेद समाप्त हुआ है तथा होटलों व रेस्तरांओं आदि में सभी जातियों के - हैं। अब प्रायः उच्च जातियों के लोग निम्न जातियों के लोगों के लोग मिलकर भोजन करते यहाँ भोजन करने में कोई संकोच नहीं करते।

(6) हरिजनों को समान अधिकार - स्वतन्त्र भारत में अन्य जातियों के समान हरिजनौं को भी अधिकार प्रदान किये गये हैं। आज सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व आर्थिक आदि क्षेत्रों में इन्हें न केवल राज्य की ओर से समान अधिकार ही प्राप्त हैं वरन् प्रत्येक प्रकार की नौकरियों, विधानमण्डलों और मन्त्रिमण्डलों में इनके लिये स्थान भी सुरक्षित कर दिये गये हैं। इन सब बातों से जारि -प्रथा के स्वरूप में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आता जा रहा है।

(7) जन्म के महत्व में कमी - जाति-प्रथा के अन्तर्गत जन्म का अत्यधिक महत्व था। ब्राह्मण के परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति को इसलिये मान-सम्मान दिया जाता था कि उसने एक ऊँची जाति में जन्म लिया है, लेकिन आधुनिक काल में जन्म के स्थान पर व्यक्ति के कर्म और गुणों का महत्व बढ़ा है। आज निम्न जाति में उत्पन्न किन्तु योग्य, कुशल तथा साहसी व्यक्ति को भी श्रेष्ठ माना जाने लगा है।

(8) बदलते हुये सम्बन्ध - आधुनिक काल में जाति-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि जातियों के पारस्परिक सम्बन्धों में बदलाव आया है। पहले दो जातियों के बीच जजमानी के सम्बन्ध पाये जाते थे अर्थात् एक जाति अपने व्यवसाय द्वारा दूसरी जाति की सेवा करती थी, किन्तु अब जजमानी सम्बन्ध टूट चुके हैं तथा राजनीतिक शक्ति को लेकर उनमें टकराव होने लगा है। अब सत्ता प्रभुजाति एवं उच्च जातियों के हाथों से निकलकर निम्न एवं बहुसंख्यक जातियों के हाथों में आ गई है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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